Life Ka Real Gyaan : Karma, Acceptance aur Peace | Life Kese Jiye
इस ‘जीवन’ नाम के नाटक में सब कुछ किसी अदृश्य शक्ति द्वारा नहीं, बल्कि हमारे ही कर्मों द्वारा संचालित होता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक जो भी घटनाएँ हमारे साथ घटती हैं, वह कोई संयोग या किस्मत का खेल नहीं होती वह हमारे ही किए गए कर्मों का परिणाम होती हैं।
हम अक्सर कहते हैं "मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?" लेकिन सच यह है कि जो कुछ भी हमारे जीवन में घट रहा है, वह हमारे ही बोए हुए बीजों का फल है। हर विचार, हर क्रिया, हर शब्द सब कुछ कर्म में बदल जाता है। और यह कर्म, समय आने पर अपना परिणाम अवश्य दिखाता है।
जो इस गहरे सत्य को समझते हैं, वे शिकायत नहीं करते। वे यह मानते हैं कि कोई ईश्वर ऊपर बैठा उन्हें सज़ा नहीं दे रहा, बल्कि जो उन्होंने किया है, वही अब उन्हें लौट रहा है। कर्म कभी किसी से पक्षपात नहीं करता। जो दोगे, वही पाओगे। जो बोओगे, वही काटोगे।
अगर हम अपने जीवन में शांति चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें स्वीकार करना सीखना होगा। जब तक हम विरोध करते रहेंगे, रोते रहेंगे, आकाश की ओर देखकर प्रश्न पूछते रहेंगे ‘क्यों हो रहा है ऐसा?’ तब तक हम दुख से बाहर नहीं आ पाएंगे।
लेकिन जो लोग जीवन को समझते हैं, वे जानते हैं कि जो कुछ भी घट रहा है, उसमें कोई गलती नहीं है। वे जो भी आता है, उसे सिर झुकाकर स्वीकार करते हैं। और यही स्वीकृति उन्हें भीतर से मुक्त करती है।
वे यह भी जानते हैं कि यदि कोई दुखद अनुभव हो रहा है, तो यह उनके पुराने कर्मों का हिसाब है, और जब यह भुक्तान पूरा हो जाएगा, तब यह बोझ भी उतर जाएगा। इसीलिए वे दुख में भी मुस्कुराते हैं, क्योंकि उन्हें यह समझ होती है कि वे अपना बोझ हल्का कर रहे हैं।
वे आगे बढ़ते हैं, बिना किसी शिकायत के। न ही वे अतीत में अटके रहते हैं और न ही भविष्य की चिंता करते हैं। उन्हें सिर्फ एक बात का ध्यान रहता है आज जो मैं कर रहा हूँ, वह मेरा अगला भाग्य बनाएगा। इसीलिए वे हर कर्म को सजगता से करते हैं, पूरे मन और श्रद्धा से। और फिर जो भी परिणाम आता है, उसे ईश्वर को समर्पित कर देते हैं।
लेकिन जो लोग स्वीकार नहीं करते, वे अतीत से चिपके रहते हैं अफसोस, ग़म, शर्म और दुख के साथ। वे बार-बार सोचते हैं कि "काश ऐसा नहीं होता…", "अगर मैं ऐसा करता तो…"। लेकिन इन बातों से क्या बदलता है? अतीत तो कभी वापस नहीं आता।
जो लोग कर्म का ज्ञान रखते हैं, वे बीते हुए को जाने देते हैं। वे जानते हैं कि बीती बातों को पकड़कर बैठने से केवल आज का समय नष्ट होता है। वे न केवल वर्तमान को स्वीकार करते हैं, बल्कि जो हो रहा है, उसे ईश्वर की इच्छा समझकर आभार भी प्रकट करते हैं।
तो अगर आप सच में जीवन में सुख चाहते हैं, तो सबसे पहले यह समझ लीजिए जीवन में जो हो रहा है, वह संयोग नहीं, आपका ही कर्म है। और इसलिए, उसे स्वीकार करना ही सच्ची बुद्धिमानी है।
क्रोध, शिकायत, दुख, घबराहट ये सब हमें पीछे खींचते हैं। लेकिन जैसे ही आप अपने जीवन को एक नाटक मानकर उसके हर दृश्य को समझदारी से स्वीकार करना शुरू करते हैं, वैसे ही सुख आपके भीतर पैदा होता है।
इसलिए आज से ही यह निश्चय कर लीजिए कि आप अब शिकायत नहीं करेंगे। आप अपने वर्तमान को पूरी श्रद्धा, मेहनत और सकारात्मकता से जिएँगे। और फिर भविष्य का भार छोड़ देंगे क्योंकि जो बीज आप आज बो रहे हैं, वही कल फूल बनेंगे।
इस नाटक का आनंद लीजिए। इसमें जो भी दृश्य आ रहे हैं सुख या दुख वह आपके ही द्वारा लिखे गए हैं। जब यह बात समझ में आ जाती है, तब जीवन से शिकायतें खत्म हो जाती हैं और आत्मा भीतर से मुस्कुराने लगती है।
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