fear of injection!! trypanophobia | सुईं का डर!!
वेसे तो डर कही प्रकार के होते है किसी को ऊँचाई से डर लगता है तो किसीको पानी से किसीको कुत्ते से तो किसी को छिपकलियों से हम आज जो बात करने वाले है वो एक सच्ची कहानी है मेरे दोस्त की ,इस कहानि में हम जानेगे उसके एक डर के बारे में जो एक आम सा डर है लेकेन इस डर से इंसान की ज़िंदगी मे क्या क्या हो सकता है वो हम जानेंगे।
इस डर का नाम है सुई का डर मतलब की इंजेक्शन में लगने वाली सुई का डर इसको medical science में trypanophobia भी कहा जााता है,मैं ओर जय एक बहोत अच्छे दोस्त है बचपन से हम साथ मे बड़े हुए और साथ मे पढें, वेसे तो वो एक बहोत बहादुर लड़का है वो रात के 2 बजे भी अकेले कही भी जा सकता है लेकिन उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी परेशानी है सुई ओर दवाखाना उसको सबसे ज्यादा दर अपनी ज़िंदगी मे लगता है तो वो है इंजेक्शन की सुई वो इतना उससे डरता है कि एक बार उसकी कंपनी में उसको अपना ब्लड ग्रुप देना था लेकिन उसने वो ब्लड ग्रुप देने में पूरे 6 महीने लगा दिए क्योकि उसको डर था कि मेरा ब्लड लेने के लिए वो मेरी उंगली में सुई घुसा देंगे और जब बॉस की डांट पड़ी तब जाके उसने बहोत हिम्मत जुटाके ब्लड ग्रुप का टेस्ट करवाया।
फिर इसे ही दिन बीतते गए और साल भी बीतते गए लेकिन एक दिन उसको अचानक पेट मे दर्द होने लगा तो वो सोच की कुछ कबने की वजह से होगा और ध्यान नही दिया फिर 3 दिनों बाद भी दर्द कम नही हुआ तो वो सोचाअब दवाई लेनी पड़ेगी ऐसा करता हु मेडिकल में जाके ले लेता हूं मेने बोलै इस नही करना है हम जेक किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा देते है पर वो नही मन और बोला में किसी डॉक्टर बोक्टर के पास नही जाने वाला और वो मेडिकल से दवा ले आया ताकि रिपोर्ट न करवाना पड़े फिर भी कुछ फर्क नही पड़ा और ऐसे ही उसने 10 दिन निकल दिए फिर उसके पेट का दर्द बहोत ही ज्यादा बढ़ गया और मुजे बोलै की आज तो डॉक्टर के पास जाना ही पड़ेगा फिर हम दोनों अच्छे डॉक्टर के पास गए ओर दिखाया जब डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने खून की जांच करने को कही तब जय बोला आओ दवाई दे दो में खून की जांच नही कराउगा फिर मेने बहोत समजाया टैब जाके वो माना और बहोत मशकत के बाद उसने अपना खून जांच के लिए दिया।
फिर थोड़ी देर बाद रिपोर्ट आयी और डॉक्टर को दिखाई टैब पता चला कि जय के पेट मे आँत में छाले पैड गए है तुरंत एडमिट होना पड़ेगा वरना समस्या और बढ़ सकती है फिर हमने सब प्रोसीजर फॉलो की ओर उसको एडमिट किया और मैने उसके घरवालों को भी इतल्ला कर दिया। अगर ओर चार या पांच दिन निकल जाते तो जय हालात बहोत गंभीर हो सकती थी लेकिन सुक्र है जल्दी के सब हो गया और ठीक दस दिनों बाद जेक उसको dicharge किया।
तो ये घटना से हमे सीखना चाहिए कि डर चाहे केसा भी हो लेकिन उतना ज्यादा हावी नही होना देना चाहिए कि जान पर बन आये।सबको ज़िंदगी मे किसी न किसी चीज़ से डर लगता ही है लेकिन निडर हो के सामना करना चाहिए ,जीवन बहोत अनमोल चीज़ है कुछ चीज़ों को हमे अपने जीवन मे बदलाव करना ही पड़ता है जिससे जीवन आसान हो सके।
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