real mowgli| असली मोगली


मोगली का हम सुनते ही आप सभी के जेहन में बचपन की यादें ताजा हो जाती है एक ऐसा बच्चा जो जंगल में रहता है जो जानवर से बात कर सकता है भारतीय पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाला यह कार्टून कैरेक्टर हम सभी के दिल में एक खास स्थान रखता है इसके कहानी के मुख्य किरदार मोगली पर आधारित अभी तक बहुत सी फिल्में कहानियां और कार्टून बन चुके हैं।

real mowgli
dina sanichar - photo : wikimedia

 हालांकि इस कार्टून कैरेक्टर को लेखक रोडिया ड्रिपिंग ने पहली बार 1994 में जंगल बुक नाम की एक रचना में प्रस्तुत किया था लेकिन आप में से बहुत से लोग शायद यह बात नहीं जानते होंगे कि मोगली का एक किरदार पूरी तरह से काल्पनिक ना होकर एक असली इंसान पर आधारित था,के पोस्ट मोगली पर आधारित है जिसे हम कार्टून और अन्य किस्से कहानियों के माध्यम से जानते हैं तो चलिए जानते है मोगली के बारे में।

सन 1872 में यूपी के बुलंदशहर में स्थित जंगलों में शिकारियों के एक ग्रुप को एक अजीब दृश्य देखने को मिला उन्होंने देखा कि भेडियो के एक जुंड के बीच में एक लगभग 6 साल का बच्चा बैठा हुआ था लेकिन वह भेड़िए उस बच्चे को हानि नहीं पहुंचा रहे थे वह बच्चा उन भेडियो के साथ ऐसे खेल रहा था मानो वह किसी इंसान के साथ खेल रहा हो, शिकारियों ने इस ग्रुप में बच्चे को भेडियो से अलग करने का फैसला किया और भेडियो के जुंड पर हमला बोल दिया।

 उन्होंने उस गुफा को आग लगा दी जिसमें कुछ भेड़िया थे ,इस हमले में एक भेडिये को मार गिराया गया और काफी मशक्कत करने के बाद उस बच्चे को भेड़ियों से अलग कर दिया गया शिकारियों ने बाद में इस बच्चे को आगरा के सिकंदरा मिशन ऑर्फनेज में दे दिया ताकि उस बच्चे की सही तरह से देखभाल की जा सके अनाथालय को इस तरह के बच्चे को कैसे हैंडल किया जाए इसका कोई ज्ञान नहीं था यहां इस बच्चे को नाम दिया गया दीना सनीचर।

दीना बाकी बच्चों के साथ ही रहता था लेकिन बाकी बच्चों से काफी अलग था वह बाकी बच्चों की तरह बोल नहीं पाता था सिर्फ जानवरों की तरह आवाज निकाल कर अपनी बातों को समझाने की कोशिश करता था वह अपने दोनों हाथों और पैरों का इस्तेमाल करके बिल्कुल किसी चार टांगो वाले जानवर की तरह चला फिरा करता था और जमीन पर गिरे पानी को भी जीभ से चाट चाट कर पीया करता था किसी ग्लास में पानी दिए जाने पर यह समझ नहीं पाता था कि उसका क्या करना है,वो सिर्फ कच्चा मास ओर मछ्ली खाया करता था।

बीना ने शुरुआती कई सालों तक पके हुए खाने को छुआ तक भी नहीं था और खाना परोसे जाने पर किसी जानवर की ही तरह सीधा थाली में मुह डाल कर खाने को खाता था उसकी इन हरकतों से यह साफ पता चलता था बीना काफी दिनों से जंगल में रह रहा था और वहां उसे जानवरों ने ही पाल पोस कर बड़ा किया था अनाथालय के लोगों ने दीना को फिर से इंसानों जैसा बर्ताव सिखाने की भरसक कोशिश की लेकिन उन्हें कोई खास कामयाबी नही मिली।

कुछ सालों के बाद दीना पका हुआ खाना खाना तो सीख गया लेकिन खाने को खाने से पहले किसी जानवर की तरह खाने को सूंघने की दीना की आदत को वह लोग कभी बदल नहीं पाए इसके अलावा अनेकों प्रयासों के बावजूद भी दीना कभी भी बोलना नहीं सीख पाया वह हमेशा से ही जानवरों जैसी आवाज निकाला करता था और इन्हीं हरक़तों के जरिए लोगों को अपनी बात समझाने की कोशिश किया करता था 12 साल की आयु तक आते-आते कपड़े पहनना और दो पैरों पर चलना तो सीख गया लेकिन अब सोते वक्त भेड़ियों की जैसी पोजीशन में ही सोया करता था।

अपनी छोटी सी जिंदगी में दीना इंसानो वाले बहुत कम ही गुण पाए गए और हजारों कोशिशों के बावजूद वह अपने आप को पूरी तरह बदलने में कामयाब रहा उसने किसी को अपना दोस्त नहीं बनाया उसने कभी किसी इंसान के प्रति किसी भी तरह का लगाव नहीं दिखाया, अनाथालय में रहने वाले कुत्ते से उसकी काफी अच्छी दोस्ती थी वह दिन भर उसी कुत्ते के साथ रहना और खेलना पसंद करता था इसके विपरीत कुछ बुरी आदतों ने जन्म लिया जैसे कि धूम्रपान करने की आदत का आदी हो चुका था इसी के कारण 35 साल की उम्र में दीना की मौत हो गई और अपने जाने के बाद भी दीना हमारे लिए कुछ सवाल छोड़ गया 

सवाल ये कि आखिर दिना वहां तक पहुंचा कैसे ?

सवाल यह की इंसान जिसे हम सोशल एनिमल के नाम से भी जानते हैं इंसानी परिवेश के अभाव में आजीवन जंगली प्रवृत्ति को अपनाया जा सकता है?

 और यदि कोई जानवर इंसान को अपना शिकार समझे बिना उसे अपने बच्चों की तरह पालकर दरियादिली का उदाहरण दे सकता है तो हम इंसान जानवरों के साथ ऐसी दरियादिली क्यों नहीं दिखा सकते ?

आप में से कितने लोग इस post को पढ़ने से पहले इस कहानी को जानते थे जिस मोगली को आपने आज तक पर्दे पर देखा है वास्तव में हिंदुस्तान की मिट्टी में जन्मी बिना सनीचर नाम की एक सच्चाई है।

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